अविस्मरणीय डॉ. राम चौधरी
01-Jun-2018 03:02 PM
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त्यागमूर्ति डॉ. राम चौधरी के बारे में बहुत कुछ कहा जा सकता है। उनका जीवन एक महान् शिक्षाविद् का जीवन था जो अपने विश्व विद्यालय की चार दीवारों के बाहर अमेरिका के प्रवासी भारतीय समाज में और भारत में भी विस्तृत था। वे अपने पेशे से न्यूयॉर्क प्रदेश के आस्वीगो नगर में स्थित स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयार्क में भौतिक-विज्ञान के प्रोफेसर थे। शिक्षक, शोधकर्ता और समाजसेवी के रूप में उनका योगदान अत्यन्त सराहनीय था और उन्होंने अपने परिवार, मित्रमंडल और समाज के अनेक लोगों को समाज के लिए अपना समय, शक्ति और धन लगाने के लिए प्रेरित किया।
मेरा उनसे पहला संपर्क हुआ जब मैं 1989 में न्यूयॉर्क के इथका नगर में स्थित कॉरनेल यूनिवर्सिटी में विज़िटिंग प्राचार्य था। उन्होंने मुझे और मेरी पत्नी डॉ. विजया गंभीर को अपने घर खाने के लिए निमंत्रित किया था। आस्वीगो इथका से लगभग 75 मील दूर है। कार से डेढ़ घंटे का रास्ता था। डॉ. राम चौधरी की ख्याति से आकर्षित और हर्षित हम उनके यहां गए और उनका आतिथ्य ग्रहण किया। उन्होंने अपना कैम्पस भी दिखाया। उनके सौम्य स्वभाव और विचारों से प्रभावित होकर हम हमेशा के लिए उनके हो गए। वर्षों बाद 2007 में हम न्यूयॉर्क नगर में होने वाले विश्व हिन्दी सम्मेलन की कार्यकारिणी समिति के सदस्य के रूप में पुनः मिले थे।
धीरे-धीरे हमें विभिन्न दिशाओं में उनके योगदान का परिचय मिलता रहा। एक तरफ़ तो अमेरिका में रहते हुए वे भारत में उत्तरप्रदेश के इटावा ज़िले में स्थित अपने गांव भूलपुर के लिए कुछ करने की तड़प लिए हुए थे। दूसरी तरफ़ उन्होंने अमेरिका के भारत-मूल के प्रवासियों के लिए भारतीय संस्कृति के सन्मूल्यों के संरक्षण के निमित्त विरासती भाषा के महत्व को पहचाना और शैक्षिक द्रष्टा के रूप में उसके संरक्षण के लिए अपने आपको समर्पित करने का निश्चय किया।
1968 में उन्होंने भारत के भूलपुर गांव में लड़कियों के लिए एक स्कूल अपने संसाधनों के बल पर शुरू किया। लड़कियों की शिक्षा से पीढ़ियां कैसे बदलती हैं यह उनकी दूरदृष्टि का परिणाम है कि आज भूलपुर का नक्शा बदल गया है। 1968 का स्कूल आज किसान इंटर कॉलेज बन चुका है और वहां केवल भूलपुर की ही लड़कियां नहीं बल्कि आसपास के गांवों की लड़कियां भी शिक्षा पाकर वहां के सामाजिक वातावरण में विशिष्ट परिवर्तन लाने में सफल हुई हैं। 2006 में डॉ. चौधरी ने भूलपुर में रूरल सेंटर ऑफ़ सांइटिफ़िक कल्चर की स्थापना की थी। इस केन्द्र का उद्देश्य था भूलपुर में स्वास्थ्य की दृष्टि से सफ़ाई का महत्व, चिकित्सीय सहायता के लिए जागरूकता और विज्ञान के विषयों के प्रति वैज्ञानिक सोच पैदा करना। अपने गांव के लोगों के हित के लिए डॉ. चौधरी ने हिन्दी में चार सौ पृष्ठों में "विज्ञान का क्रमिक विकास" नामक पुस्तक लिखी है। इस पुस्तक में भारतीय वैज्ञानिकों के योगदान का विवरण है। इस महत्वपूर्ण कार्य की सराहना के रूप में आस्वीगो के रोटरी फाउंडेशन ने भी भूलपुर में विज्ञान-विषयक जागरूकता फैलाने के लिए डॉ. चौधरी को आर्थिक सहायता प्रदान की।
भौतिक विज्ञान के शोध-क्षेत्र में भी डॉ. चौधरी का योगदान महत्वपूर्ण है। उनका शोध सुपर कंडक्टीविटी ऐंड काइनैटिक्स ऑफ़ सरफ़ेस सेगरीगेशन विषय पर है और उनके शोध की खूब सराहना हुई है। उन्होंने अपने पेशे में अनेक राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय समितियों का नेतृत्व किया है। उनके शोधकार्य और समाज के प्रति अथक योगदान की सराहना करते हुए राष्ट्रपति ओबामा ने भी उन्हें विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया था।
हिन्दी के अंतर्राष्ट्रीय महत्व को पहचानते हुए डॉ. चौधरी ने प्रवासी भारतीयों में अपनी विरासती भाषा के प्रसार के लिए बड़ा अभूतपूर्व योगदान दिया है। वे कुछ वर्षों तक अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी समिति के अध्यक्ष रहे और उन्होंने समिति की "विश्वा" नामक पत्रिका का संपादन भी किया। उन्होंने विश्व हिन्दी न्यास (वल्र्ड हिन्दी फाउंडेशन) की भी स्थापना की जिसके तत्वावधान में पहली पीढ़ी और दूसरी पीढ़ी के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन शुरू हुआ। इसके अतरिक्त उन्होंने चार पत्रिकाएं हिन्दी में शुरू कीं। इन पत्रिकाओं में विशेष उल्लेखनीय हैं - "हिन्दी जगत" और "विज्ञान प्रकाश"। उनके जाने के बाद हिन्दी जगत का प्रकाशन अब भी नियमित रूप से हो रहा है। हिन्दी के प्रचार में वे एक निस्सस्वार्थ और कर्मठ कार्यकर्ता थे।
डॉ. चौधरी ऋषि-तुल्य थे। द्रष्टा थे। अथक कर्मयोगी थे।
by
डॉ. सुरेंद्र गंभीर, ()