01-Jan-2016 12:00 AM
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ना इधर के रहे
ना उधर के रहे
बीच अधर अटके रहे
ना इंडिया को भूला सके
ना अमेरिका को अपना सके
इंडियन-अमेरिकन बनके काम चलाते रहे
ना हिंदी को छोड़ सके
ना अंग्रेजी को पकड़ सके
देसी एक्सेंट में गोरों को कन्फ़ुस करते रहे
ना टर्की पका सके
ना ग्रेवी बना सके
राम का नाम लेके थैंक्सगिविंग मनाते रहे
ना क्रिसमस ट्री लगा सके
ना बच्चों को समझा सके
दिवाली पर सांता बनके तोहफे बाँटते रहे
ना शॉटर्स पहन सके
ना सलवार छोड़ सके
जीन्स पे कुरता और स्नीकर्स चढ़ा के इतराते रहे
ना नाश्ते में डोनट खा सके
पिज़्ज़ा पर मिर्च छिड़कर मज़ा लेते रहे
ना गर्मियों को भूला सके
ना बर्फ़ को अपना सके
खिड़की से सूरज को देख कर "ब्यूटीफुल डे' कहते रहे
अब आयी बारी भारत को जाने की
तो वहाँ हाथ में पानी की बोतल लेकर चले
ना भेलपुरी खा सके
ना लस्सी पी सके
पेट के दर्द से तड़पते मरे
हरड़े-इसभगोल खाकर काम चलाते रहे
ना खुड्डी पर बैठ सके
ना कमोड़ को भूल सके
बस बीच अधर झुकके काम चलाते रहे
ना मच्छर से भाग सके
ना डॉलर को छुपा सके
नौकरों से भी पीछा छुड़ा कर भागते रहे
बस नींदों में स्वप्न देखते रहे
या आसमान को ताकते रहे
ना इधर के रहे
ना उधर के।
by
उमेश ताम्बी, ()