01-Mar-2016 12:00 AM
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प्रिय भाई,
आज जा रहा हूँ, तुमसे दूर
तुम्हारी नसीहत से दूर
बहुत दूर, जहाँ नहीं पहुँचेंगी
तुम्हारी आकांक्षाओं की किरण।
स्वयं में बांध कर
बहुत जी चुका मैं,
आज के मूल्यों में बंध
बहुत ढोया संबंधों का बोझ!
प्रिय भाई
झुक गए हैं मेरे कंधे,
बाजुओं में हो रहा है कंपन,
उतारना चाहता हूँ अब यह बोझ
और देखना चाहता हूँ
टूटे पंख फिर जुड़ते हैं कि नहीं?
निकल जाऊँगा घाटियों के पार
एक ही क्षण में देखते रहना तुम।
पर यह नहीं समझना
परित्याग किया है तुम्हारा,
मैंने तो छोड़ा है वह सब
जो तुम्हें भी नहीं चाहिए था
रक्षा की है मैंने
तुम्हारी, और अपनी मंजूषा की!
तीर की छलांग
प्रिय भाई,
रोकना नहीं मुझे
नहीं भूलना
प्रत्यंचा जितनी खिंचती है
तीर उतनी दूर जाता है,
प्रिय भाई,
और दब जाने दो मेरा मेरुदंड,
और प्रतीक्षा करो
तीर के छलांग लगाने की।
by
डॉ. एल.के. वमा, (INDIA)