01-Jan-2016 12:00 AM
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जनाब अकील नोमानी साहब की किताब "रहगुज़र' पढ़कर खुद के उर्दू शायरी के जानकार होने की ग़लतफहमी दूर हो गयी। साठ-सत्तर शायरी की किताबें पढ़ लेने के बाद मुझे लगने लगा था कि मैंने उर्दू-हिंदी के बेहतरीन समकालीन शायरों को पढ़ लिया है और अब अधिक कुछ पढ़ने को बचा नहीं है।
सच कहूँ तो अकील साहब के बारे में अधिक नहीं सुना था, लेकिन उनकी बेहतरीन शायरी की किताब से परिचय ने दिल खुश कर दिया।
शायर तो "अकील' बस वही है
लफ़्ज़ों में जो दिल पिरो गया है
लफ़्ज़ों में दिल पिरोने वाले इस शायर के बारे में डॉ. मंजूर हाश्मी साहब कहते हैं "अकील की शायरी एक दर्दमंद और पुरखुलूस दिल की आवाज़ है।' इस किताब को पढ़ने के बाद शत-प्रतिशत सही लगती है।
मेरी ग़ज़ल में हैं सहरा भी और समंदर भी
ये ऐब है कि हुनर है मुझे ख़बर ही नहीं
सहरा और समंदर का एक साथ लुत्फ़ देने वाली इस किताब के कुछ शेर यूं भी हैं -
आंसुओं पर ही मेरे इतनी इनायत क्यूँ है
तेरा दामन तो सितारों से भी भर जाएगा
तुम जो हुशियार हो, खुशबू से मुहब्बत रखना
फूल तो फूल है, छूते ही बिखर जाएगा
हर कोई भीड़ में गुम होने को बेचैन-सा है
उड़ती देखेगा जिधर धूल, उधर जाएगा
भीड़ में गुम होने से हमें सुरक्षा का एहसास होता है, लेकिन भीड़ में गुम लोगों के चेहरे नहीं होते, पहचान नहीं होती और जिन्हें अपनी पहचान करवानी होती है ऐसे बिरले साहसी लोग भीड़ में शामिल नहीं होते। अकील साहब सबमें शामिल हैं मगर सबसे जुदा लगते हैं।
ज़िन्दगी यूँ भी है, ज़िन्दगी यूँ भी है
या मरो एकदम या मरो उम्र भर
या ज़माने को तुम लूटना सीख लो
या ज़माने के हाथों लुटो उम्र भर
उनको रस्ता बताने से क्या फायदा
नींद में चलते रहते हैं जो उम्र भर
अकील साहब इतने बेहतरीन शेर कहने के बावजूद भी निहायत सादगी से अपने आपको उर्दू शायरी का तालिबे इल्म ही मानते हैं। उनका ये शेर देखें जिसमें उन्होंने किस ख़ूबसूरती से इस बात का इज़हार किया है।
by
नीरज गोस्वामी , ()