सागर विश्व विद्यालय की देहरी छूते हुए अशोक वाजपेयी के कविता संग्रह "शहर अब भी सम्भावना है" से सामना हुआ और उसे पढ़ते हुए लगा कि मैं भी फूल खिला सकता हूँ। मेरी किशोरवय में एक ऐसा कवि सामने आया जिसने ...
श्री नरेश मेहता और जगदीश गुप्त के साथ जबलपुर में कविता सुनाने का अवसर मिला। नरेश मेहता की कविताएँ सुनकर लगा कि कविता में श्रुतियों की भोर हो रही है जैसे आधुनिक कविता की भूमि पर वैदिक ऋचाएँ उतर रही ...
भाषा एक सेतु की तरह लगती है जिसे मन और बुध्दि के बीच बाँधना पड़ता है। पीड़ाओं के खारेपन में हिलुरते भवसागर में अपनी नौका खेते कवि की आँखें बार-बार भर आती हैं और छलककर सागर में झर जाती हैं। कवि की आँख ...