01-Jan-2017 12:44 AM
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पेरिस के प्रवास में जो भला-बुरा देखा अगर वो सब बताने की कोशिश की जाए तो कभी बातें ही ख़त्म ना हों। कम ही लोगों को मालूम होगा कि पेरिस को फ्रेंच में पाही बोला जाता है। आज भले ही एफ़िल टॉवर इस नगर की पहचान हो लेकिन एफ़िल टॉवर के बनने से पहले भी पेरिस की एक अलग ही शान थी। कला के कद्रदानों के लिए जन्नत कहे जाने वाले इस शहर का कोई ऐसा हिस्सा नहीं जो एक कुशल कथाकार न हो। कल्पना कीजिये उस वक़्त की जब दुनिया में बिजली का आविष्कार नहीं हुआ था और डूबी रहती थी इसकी रातें अँधेरे में, तब पेरिस अपने छप्पन हज़ार से भी अधिक गैस लैम्प पोस्टों के बूते सारी रात जगमगाता रहता था और इसीलिए इसे "रौशनी का शहर" का खिताब भी हासिल था। आज भले ही उन गैस लैम्पों की बत्तियों की जगह बारास्ते बल्ब अब एलईडी लाइटों ने ले ली हो लेकिन अभी भी ये लैम्प पोस्ट पेरिस की एक पहचान बने हुए हैं।
पेरिस के लिए रवाना होने से पहले जब अजित राय से मिलने गया और उन्होंने हालिया पेरिस प्रवास के दौरान ली गई वह तस्वीर दिखाई जिसमे वह जाँ पॉल सात्र्र चौराहे पर खड़े हैं तो मन ही मन यह सोचा जरूर कि इतनी महत्वपूर्ण जगह देखने से कैसे रह गई? जब पेरिस पहुँच कर नया घर देखने से पहले कुछ दिन के लिए एक मित्र के यहाँ ठहरना हुआ तो पहला काम ढूँढने के बजाय जो शुरू किया वह था गूगल मैप की सहायता से उस चौराहे की खोज़बीन करना और हमारे लिए यह विचित्र संयोग आश्चर्य व रोमांच से भर देने वाला था कि हम जाँ पॉल सात्र्र चौराहे पर "प्लास दु जाँ पॉल सात्र्र" इलाके में ही रह रहे थे।
पेरिस के बैंकिंग तंत्र, चिकित्सा सुविधायें, सरकारी कार्यालयों में होने वाले काम दुनिया के बाकी शहरों की तुलना में इतनी तसल्लीनता से होते हैं कि कई बार खीज़ पैदा हो जाती है या आप भूल भी जाते हैं कि आपने ऐसे किसी कार्य के लिए आवेदन कर रखा है। अच्छी बैंकिंग सुविधा के मामले में कई बार यह महसूस हुआ है कि फ्रांस भारत से भी पिछड़ा हुआ है, बीस महीनों में शायद ही कोई ऐसा काम हो जो बिना झंझट के निपटा हो, खाता खुलवाने के लिए तीन-चार चक्कर, डेबिट कार्ड बनवाने के लिए एक-दो, शाखा बदलवाने के लिए तमाम आवेदन और चक्कर, पैसा हस्तांतरित करने के लिए बार-बार शाखा जाना, बैंकिंग सुविधाएँ (जो सिर्फ कहने भर को हैं) को ऑनलाइन कराने के लिए चक्कर और उसके बाद बार-बार ये शिकायतें लेकर पहुँचना की ऑनलाइन सेवा मोबाइल से जुड़ी नहीं या सक्रिय नहीं हुई। इस तरह की परेशानियों का अंतहीन सिलसिला तब तक चलता है जब तक आप हाथ नहीं जोड़ लेते। पहले पहल लगा था कि यह सारी समस्या भाषा न आने की वज़ह से है क्योंकि यदि एक अधिकारी मित्र की बात पर यक़ीन करें तो यहाँ कार्यालयों में कर्मचारियों को सिर्फ फ्रेंच बोलने के आदेश रहते हैं, पर यह मेरे दिल को खुश रखने वाले गालिबी ख़्याल से ज्यादा और कुछ नहीं था क्योंकि जल्द ही जान गया कि ऐसी मुसीबतें सिर्फ हमसे नहीं बल्कि यहाँ के स्थानीय लोगों के सामने भी लगभग बराबर तीव्रता से टकराती हैं।
सामाजिक सुरक्षा के कार्यालय में अपना पंजीकरण कराने के लिए जब मुझे एक ही फॉर्म चार बार जमा कराना पड़ा और छह महीने बाद वहाँ थोड़ी-बहुत अंग्रेज़ी समझने वाली एक महिला कर्मचारी की मदद से पंजीकरण कराने में सफल रहा तो मैं ये वाक़या एक स्थानीय दोस्त को सुना रहा था और वह मुँह खोल कर देर तक मेरी तरफ देखता रहा, मुझे लगा कि अपने तंत्र के ढीले रवैये के बारे में सुन हैरान है किन्तु उसने बताया कि "वह हैरान है कि यह सब आठ महीने से पहले कैसे हो गया और उस कार्यालय में कोई अंग्रेज़ी बोलने वाला कैसे मिल गया।"
पर यह सब तब की जरूरत है जब आप यहाँ कुछ लम्बे समय के लिए डेरा डालने वाले हों, सिर्फ कुछ दिन यहाँ की कला की उपासना करने आये हैं तो बहुत संभव है कि आपको इन परेशानियों का सामना न करना पड़े। ये जरूर है कि फ्रेंच भाषा के बिना यहाँ गुज़ारा चलना असंभव तो नहीं पर कठिन जरूर है। इसका श्रेय नेपोलियन बोनापार्ट को जाता है जिन्होंने पेरिस को फ्रेंचोफोनिक बनाने के आदेश जारी किये थे अर्थात पेरिस में हर समय, हर दिशा से सिर्फ फ्रेंच भाषा सुनाई पड़नी चाहिए। फ्रेंच न समझ सकने वाले के लिए यह बात जहाँ परेशानी का सबब बन सकती है वहीं यह सबक भी कि किस तरह अपनी मातृभाषा का सम्मान और उससे प्रेम किया जाए।
अगर दूसरा कोई दावेदार देश न निकले तो मैं समझता हूँ कि फ्रांस में कार्यरत कर्मचारियों को दुनिया भर में सबसे ज्यादा छुट्टियाँ मिलती हैं। साल में चालीस से पैंतालीस छुट्टियाँ जिनमें कि बीच में पड़ने वाले शनिवार-रविवार या अन्य राष्ट्रीय या धार्मिक अवकाश शामिल नहीं माने जाते, इसके अतिरिक्त हर माह डेढ़ छुट्टी अलग से। इस तरह एक कर्मचारी एक वर्ष में औसतन तीन महीने की छुट्टियाँ मना सकता है या चाहे तो उन छुट्टियों को अतिरिक्त वेतन के रूप में भुना सकता है, पर ज्यादा वेतन लेने के बजाय छुट्टियाँ मनाना यहाँ के लोगों की प्राथमिकता रहती है। मज़ेदार बात यह है कि इतनी छुट्टियों और काम करने के ढीले रवैये के बाद भी फ्रेंच लोगों को संसार में सबसे अधिक कार्यदक्ष माना जाता है। अब इसके लिए किस तरह से आँकड़े जुटाए जाते हैं यह सब मेरे लिए तो एक अबूझ पहेली है।
इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता जो एक स्थानीय फ्रेंच मित्र ने कही थी कि "पेरिस बना ही सिर्फ धनाढ्य लोगों के लिए है।" यानि इसकी ठसक वाली अदा भी इसे एक ठेठ महानगर का रुतबा देती है
इस संसार में और भी कई ऐसे शहर हैं जो कला के आश्रयदाता रहे हैं और कलाकृतियों से भरे पड़े हैं लेकिन मेरे विचार से पूरा पेरिस शहर ही अपने आप में एक कलाकृति है। फ्रेंच लोग ब्रिटेन के साथ तो खानदानी दुश्मनी मानते ही रहे हैं लेकिन आज के समय में अमेरिका को भी लगभग नफ़रत ही करते हैं और यह नफ़रत भी एक तरफी नहीं है यानि दोनों तरफ़ से बराबर की मोहब्बत हिलोरें मारती हैं। यहाँ रहने वाले देसी और विभिन्न देशों के प्रवासी-अप्रवासी यह कहने से नहीं हिचकते कि पेरिस 2005 से पहले एक साफ़-सुथरा शहर था लेकिन जब से यहाँ अफ़्रीकी देशों और पूर्वी यूरोप के बाशिंदे आ बसे हैं तब से यह भी कूड़े का ढेर होता जा रहा है। नस्ल और रंगभेदी आरोप लगाने वालों की परवाह न करते हुए और इस सबके पीछे के कारणों की विवेचना न करके मैं खुद भी यही कहूँगा कि जिन कंगनों का अक्स मैं आपको दिखा रहा हूँ वो मैंने अपने हाथों में पहन देखे हैं।
विश्व की सबसे पुरानी मेट्रो सेवाओं में से एक इस शहर में है ही लेकिन इसकी भी बड़ी खासियत यह है कि यहाँ के स्टेशन अपने समकालीन मेट्रो शुरू करने वाले शहरों की तुलना में काफी पास-पास हैं। उन्नीस सौ में प्रारम्भ होने वाली यहाँ की जीवनरेखा मेट्रोपोलिटन कहलाती है और इसके अधिकाँश प्रवेश द्वार भी शहर की कलात्मकता की पसंद से मेल खाते हुए बनाए गए हैं, जो साँझ ढलते ही और भी ज्यादा खूबसूरत हो जाते हैं।
सभी तो नहीं मगर अधिकांश मेट्रो स्टेशन अपनी एक अलग और ख़ास पहचान रखते हैं। किसी स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर "द थिंकर" व "बाल्ज़ाक" की प्रतिमाएँ स्थापित होती हैं तो किसी की सीलिंग पर महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं की तस्वीरें होती हैं और किसी के एक किनारे प्रसिद्ध ऐतिहासिक भवन की नींव। यहाँ सबसे पुरानी लाइन लाइन एक है और सबसे नवीन लाइन चौदह जो कि बिना ड्राइवर वाली मेट्रो लाइन होने की वज़ह से देर रात तीन बजे तक चलती रहती है। लेकिन इन मैट्रो में चलने के लिए भी आपको सावधान रहना पड़ता है, बात सिर्फ चोरी-चकारी या जेब काटने तक सीमित नहीं क्योंकि अगर आप शहर में नए हैं तो जान लें कि ऐसे काम ही मौके होंगे जब आपको बताया जाएगा कि फलाँ स्टेशन पर उतरते समय मेट्रो से प्लेटफॉर्म के बीच के अंतर को ध्यान में रखें और मेट्रो के नीचे न फिसल जावें। दुविधा ये भी है कि ज्यादातर उद्घोषणाएँ फ्रेंच में ही होती हैं सो आप सुनकर भी समझ नहीं पाते और कई बार तो किसी स्थान से दो दिशाओं में बँटने वाली मेट्रो में बैठे आप अनचाहे स्टेशन पर पहुँच सकते हैं। मेट्रो के भीतर आने-जाने वाले स्टेशनों की सूची दर्शाती टिमटिमाती लाइटें तक कई बार दुश्मनी निभा जाती हैं और किसी एक स्टेशन से ख़ास लगाव दर्शाते हुए उसी पर अटकी रह जाती हैं, इसलिए आपके बिना चैतन्य हुए गुज़ारा ज़रा मुश्किल ही है।
वर्तमान पेरिस का फैलाव बीस एहोदिस्मों यानी डिस्ट्रिक्ट में है। मगर एक समय था जब यह अधिकांश उस स्थान तक केंद्रित था जिसमें आज विश्व प्रसिद्ध लूव्र संग्रहालय बना हुआ है, उसमें और उसके आस-पास कभी राजमहल हुआ करता था। आज भी पेरिस का प्रथम डिस्ट्रिक्ट वही क्षेत्र है। इससे आगे के डिस्ट्रिक्ट कुछ पुराने पेरिस और कुछ उसके आस-पास के गाँवों को मिलाकर बनाया गया है।
by
दीपक चौरसिया "मशाल", (UK)